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Shri Beetak Tika : Volume 1

By Swami, Rajan

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Book Id: WPLBN0100750752
Format Type: PDF (eBook)
File Size: 5.45 MB.
Reproduction Date: 7/6/2025

Title: Shri Beetak Tika : Volume 1  
Author: Swami, Rajan
Volume: Volume 1
Language: Hindi
Subject: Non Fiction, Education
Collections: Authors Community, Religion
Historic
Publication Date:
2025
Publisher: SPJIN
Member Page: Shreyash Waghela

Citation

APA MLA Chicago

Swami, R. (2025). Shri Beetak Tika : Volume 1. Retrieved from http://self.gutenberg.org/


Description
श्री बीतक महामति श्री लालदास जी द्वारा श्री बीतक ग्रन्थ की रचना की गई, जिसमें अक्षरातीत श्री प्राणनाथ जी द्वारा श्री देवचन्द्र जी (सम्वत् १६३८ से १७१२ तक), श्री मिहिरराज जी (सम्वत् १७१२ से १७५१ तक), तथा श्री छत्रसाल जी (सम्वत् १७५१ से १७५८ तक) के तन से की गई आवेशित ब्रह्मलीला का वर्णन है। बीतक कोई मानवीय इतिहास नहीं है और न ही किसी भगवान, आचार्य, सन्त, या गुरु का अपने भक्तों या शिष्यों के साथ घटित होने वाला वृत्तान्त है। स्वलीला अद्वैत सच्चिदानन्द परब्रह्म का अपनी आवेश शक्ति द्वारा श्री महामति जी के धाम हृदय में विराजमान होकर उन्हें श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप में अपने जैसा ही बना देने, एवं माया के अन्धकार में भटकती हुई आत्माओं को क्षर-अक्षर से परे परमधाम की अलौकिक राह दिखाने की दिव्य लीला का वर्णन ही बीतक है। सृष्टि के प्रारम्भिक काल से ही कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनका यथोचित उत्तर जानने का प्रयास प्रत्येक मनीषि करता रहा है। मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मृत्यु के पश्चात् मैं कहाँ जाऊँगा? परब्रह्म कौन है, कहाँ है, और कैसा है? यह सृष्टि क्यों बनी, कैसे बनी, तथा लय होने के पश्चात् इसका अस्तित्व कहाँ विलीन हो जायेगा? यद्यपि तारतम वाणी में इन प्रश्नों का यथावत् समाधान है, किन्तु उस ज्ञान मञ्जूषा (पेटी) को खोलने की कुञ्जी (चाभी) बीतक है। इसमें विभिन्न घटनाक्रमों के माध्यम से ज्ञान के अनमोल मोतियों को बिखेरा गया है तथा वेद-कतेब के एकीकरण द्वारा समस्त विश्व को एक आँगन में लाने की एक मधुर झाँकी दर्शायी गयी है। इसका अनुशीलन करने वाला डिण्डिम घोष के साथ यह कह सकता है- कौन कहता है कि परब्रह्म का साक्षात्कार नहीं हो सकता? मुझे तो ब्रह्मात्माओं के पद्चिन्हों पर चलकर ऐसा लग रहा है कि परब्रह्म मेरी आत्मा के धाम हृदय में अखण्ड रूप से विराजमान हैं और उन्हें अपनी अन्तर्दृष्टि से कभी भी देखा जा सकता है।

Summary
श्री बीतक ग्रन्थ का रचनाकार महामति श्री लालदास जी हैं, जिसमें अक्षरातीत श्री प्राणनाथ जी द्वारा अपने तीन भक्तों—श्री देवचन्द्र जी, श्री मिहिरराज जी और श्री छत्रसाल जी—के माध्यम से की गई ब्रह्मलीला का दिव्य वर्णन है। यह ग्रन्थ मानवीय इतिहास या गुरु-भक्त की घटनाएँ नहीं, बल्कि स्वयं अद्वैत सच्चिदानन्द परब्रह्म द्वारा आत्माओं को परमधाम का मार्ग दिखाने की लीला का विवरण है। इसमें उन शाश्वत प्रश्नों का उत्तर मिलता है जो मानव सृष्टि के प्रारम्भ से मनीषियों को उद्वेलित करते आए हैं, जैसे आत्मा का स्वरूप और परब्रह्म की वास्तविकता। बीतक को तारतम वाणी की कुंजी माना गया है, जिसमें वेद-कतेब के एकीकरण द्वारा समस्त विश्व को एकता का संदेश दिया गया है। इसका गहन अनुशीलन करने से साधक अनुभव कर सकता है कि परब्रह्म उसके हृदय में ही अखण्ड रूप से विराजमान हैं।

Table of Contents
१.।।अथ तीन सरूपों की बीतक लिखते।। १. कलियुग के राजा १. त्रेतायुग के राजा १. द्वापरयुग के राजा १. सतयुग के राजा २. महाकारण २. बीतक कच्छ देश की ३. बीतक कच्छ देश की ४. श्री देवचन्द्र जी के स्वरूप की पहचान ५. नौतनपुरी लीला ६. दर्शन ७. संक्षिप्त जीवन वृत्त ८. अन्तर्धान और बलिदान ९. मोमिनों की कुर्बानी १०. श्री देवचन्द्र जी परिवार प्रसंग ११. सुन्दरसाथ आगमन १२. कुरान पुराण की साक्षी १३. दोनों स्वरूपों का मिलाप १४. कसौटी १५. खेता भाई के कार्य हेतु अरब को गये १५. नौतनपुरी की बीतक १६. सद्गुरु अन्तर्धान लीला १७. तारतम वाणी अवतरण १८. सुन्दरसाथ को प्रबोध १९. तीन सृष्टि २०. दीव बंदर की बीतक २१. दीव बंदर में उद्बोध २२. दीव में ब्रह्ममुनियोंकी रक्षा २३. ठट्ठानगर वृत्तांत २४. चिन्तामणि बोध २५. श्री लालदास जी का श्रीजी से मिलाप २६. मस्कत बंदर वृत्तांत २७. अबासी बन्दर की बीतक २८. अब्बास बन्दर से श्रीजी का ठठ्ठानगर पहुँचना २९. नलिया का वृत्तान्त एवं धाराभाई प्रसंग ३०. नलिया का वृत्तान्त एवं धाराभाई प्रसंग(२) ३१. नलिया का वृत्तान्त एवं धाराभाई प्रसंग(३) ३२. एक धर्म का सूत्रपात ३३. सूरत से प्रस्थान (अमदाबाद, सिद्धपुर, मेरता प्रसंग) ३४. कतेब की पूंजी ३५. नीमानुज सम्प्रदाय ३५. माध्व सम्प्रदाय ३५. रामानुज सम्प्रदाय ३५. लक्ष्मीदास पर हांसी ३५. विष्णु श्याम सम्प्रदाय ३५. हरिद्वार प्रसंग ३६. अथ दस नाम संन्यासी की विधि ३६. सातों मन्या के मंत्र ३७. श्री निजानन्द सम्प्रदाय ३७. श्रीजी का जवाब ३७. षट् दर्शन की विधि ३८. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.२ ३९. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.३ ४०. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.४ ४१. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.५ ४२. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.६ ४३. श्री निजानन्द सम्प्रदाय.७ ४४. अवज्ञाकारियों पर रोष ४५. लैल-तुल-कद्र ४६. पैगाम ढांप्या गिरोह ने ४७. आगे आपने पत्री लिखी सो शुरू ४८. आगे छोटी पत्री वोही में पुरजी ४९. अब दिल्ली छोड़ उदेपुर आए ५०. उदयपुर प्रसंग ५१. मन्दसोर की बीतक ५२. उज्जैन की बीतक ५३. औरंगाबाद वृत्तान्त ५४. शुक्राना-आकोट ५५. लाल दास लसकर (काजियों के पास) को गए ५६. रसूल से मुनकर ५७. आकोट की बीतक ५८. रामनगर की बीटक ५९. गढ़ा का वृत्तान्त ६०. श्री जी वा महाराज जी की भेंट ६१. श्री जी वा महाराज जी की भेंट.२ ६२. मंगलाचरण ६३. अष्ट पोहोर की सेवा- पहला पहर ६४. अष्ट पोहोर की सेवा- दूसरा पहर ६५. अष्ट पोहोर की सेवा- दूसरा पहर(२) ६६. अष्ट पोहोर की सेवा- तीसरा पहर ६७. अष्ट पोहोर की सेवा- चौथा पहर ६८. अष्ट पोहोर की सेवा- पांचमा पहर ६९. अष्ट पोहोर की सेवा- छठा पहर ७०. अष्ट पोहोर की सेवा- सातवां पहर ७१. अष्ट पोहोर की सेवा- आठमा पहर ७२. छत्तीस कारखानों की सेवा ७३. गर्मी के दिनों की सेवा

 
 



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